अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को मिलने वाले आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. फैसले के बाद कहा जा रहा है कि जजों की टिप्पणियां आरक्षण को पूरी तरह बदल सकती हैं. दरअसल मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6:1 बहुमत से फैसला सुनाया. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राज्य अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आगे उप-वर्गीकरण यानी कोटे के अंदर कोटा दे सकते हैं जिससे इन समूहों के अंदर ज्यादा पिछड़ी जातियों को कोटा प्रदान करना सुनिश्चित किया जा सके.
बता दें कि पीठ ने छह अलग-अलग फैसले सुनाए. न्यायाधीश बीआर गवई, बेला एम त्रिवेदी, विक्रम नाथ, मनोज मिश्रा, पंकज मिथल और सतीश चंद्र मिश्रा की पीठ ने पंजाब सरकार की उस याचिका पर ये फैसला सुनाया है जिसमे उसे पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती दी थी.
पीठ ने इस साल फरवरी में मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. शीर्ष अदालत ने तब कहा था, "अनुसूचित जातियों के अंदर विभिन्न जातियों के लिए सामाजिक स्थिति और अन्य संकेतक अलग-अलग हो सकते हैं. इसलिए, सामाजिक और आर्थिक पिछड़ापन की डिग्री एक व्यक्ति या जाति से दूसरी जाति में अलग हो सकती है."
सात न्यायाधीशों की पीठ में शामिल न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि एससी/एसटी के भीतर ऐसी श्रेणियां हैं, जिन्हें सदियों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है. उन्होंने आगे कहा कि राज्य को एससी/एसटी श्रेणी के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए एक नीति विकसित करनी चाहिए. शीर्ष अदालत ने कहा कि एससी और एसटी के सदस्य अक्सर भेदभाव के कारण सीढ़ी चढ़ने में असमर्थ होते हैं.
इस फैसले के साथ ही शीर्ष अदालत ने ई.वी. चिन्नैया मामले में पांच न्यायाधीशों की पीठ के 2004 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समरूप समूह हैं और इसलिए, राज्य इन समूहों में ज्यादा वंचित और कमजोर जातियों के लिए कोटा के अंदर कोटा देने के लिए उन्हें आगे उप-वर्गीकृत नहीं कर सकते हैं.
यानी सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला भारत के सामाजिक न्याय और समता के सिद्धांतों को मजबूती प्रदान करता है. यह निर्णय राज्य सरकारों को अधिकार देता है कि वे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के भीतर उप-वर्गीकरण कर सकें, लेकिन इसके लिए उन्हें ठोस और प्रदर्शनीय डेटा का पालन करना होगा. यह फैसला यह सुनिश्चित करेगा कि आरक्षण का लाभ उन लोगों तक पहुंचे जो वास्तव में पिछड़े हैं और जिन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से अधिक समर्थन की आवश्यकता है.