नई दिल्ली: अप्रैल से मई महीने तक जिस वक्फ बोर्ड की याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की थी, उसका फैसला अब यानि 15 सितंबर को आया है, इस फैसले को सुनने के बाद कई लोग ये नहीं समझ पा रहे हैं कि इतने प्रदर्शनों, आंदोलन की चेतावनी और लंबी जिरह के बाद आखिर अदालत में जीत किसकी हुई, केन्द्र सरकार का झंडा बुलंद हुआ या फिर मुस्लिम पक्ष ने बाजी मार ली, इसे समझने के लिए अदालत का आदेश पहले देखना होगा, फिर समझाएंगे असल में जीत किसकी हुई.
सुप्रीम कोर्ट के 3 बड़े आदेश
यानि 11 सदस्यों वाले बोर्ड में मुस्लिम समुदाय का ही बहुमत रहेगा, इस हिसाब से ये फैसला मुस्लिम पक्ष की जीत की तरह दिखता है, लेकिन खुद मुस्लिम पक्ष के नेता इस बात से सहमत नहीं हैं, ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड के मेंबर मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली कहते हैं अभी 50 फीसदी जीत मिली है तो वहीं बीजेपी नेता और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय इसे मुस्लिमों की जीत नहीं बताते.
हालांकि अब भी मुस्लिम पक्ष ये दलील दे रहा है कि अगर वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम मेंबर होंगे तो फिर हिंदुओं के मंदिर वाले बोर्ड में गैर हिंदू क्यों नहीं हो सकते. मुस्लिम पक्ष 5 साल इस्लाम के पालन वाले नियम पर भी आपत्ति जता रहा है, ओवैसी तो यहां तक कह रहे हैं कि इस बिल का मकसद मुसलमानों को दूसरे दर्जे का शहरी बनाना है. दरअसल असदुद्दीन ओवैसी, जियाऊर्रहमान बर्क, अरशद मदनी, महुआ मोइत्रा और मनोज झा समेत कई सांसदों और मुस्लिम पक्ष के लोगों की ओर से इसे लेकर याचिका दायर हुई थी, जिसमें से 5 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल महीने में पहले सुनवाई की, फिर मई में तीन दिन लगातार सुनवाई हुई, और अब अदालत ने ये फैसला सुनाया है. अब आप तय कीजिए आप किसके साथ हैं, नए कानून के साथ या विरोध करने वालों के साथ.