नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ने कई राज्यों में लागू धर्मांतरण विरोधी कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की और केंद्र व राज्यों से जवाब तलब किया है. प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने स्पष्ट किया कि सभी पक्षों के जवाब मिलने के बाद ही वह इन कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की याचिका पर विचार करेगी. अदालत ने राज्यों को चार सप्ताह का समय दिया है. जबकि, याचिकाकर्ताओं को उसके दो सप्ताह बाद प्रत्युत्तर दाखिल करने की अनुमति दी गई है. मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद की जाएगी.
कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने हाल में कानून में कठोर संशोधन किए हैं, जिनसे अंतरधार्मिक विवाह करने वाले दंपतियों को गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ता है. उन्होंने बताया कि नए प्रावधानों के तहत किसी तीसरे पक्ष को भी मामले में शिकायत दर्ज करने का अधिकार दिया गया है, जिससे बड़े पैमाने पर उत्पीड़न के केस सामने आ रहे हैं. सिंह ने अदालत से याचिकाओं में संशोधन की अनुमति मांगी है, जिसे मंजूरी दे दी गई.
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने मध्यप्रदेश द्वारा पारित कानून पर अंतरिम रोक लगाने याचिका दाखिल की है. अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने भी अदालत को अवगत कराया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश और हरियाणा में लागू कानूनों के खिलाफ हस्तक्षेप याचिकाएं दाखिल की हैं. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कुछ राज्य सरकारों की ओर से अंतरिम राहत के अनुरोध का विरोध किया और कहा कि कई साल बाद अचानक स्थगन की मांग करना कहीं से भी उचित प्रतीत नहीं होता है.
सुनवाई के दौरान अदालत ने वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर उस याचिका को भी अलग कर दिया, जिसमें छल-कपट से धर्मांतरण पर रोक लगाने की मांग की गई थी। प्रधान न्यायाधीश ने इस पर टिप्पणी करते हुए पूछा कि आखिर यह कौन तय करेगा कि धर्मांतरण छल-कपट से हुआ है या नहीं हुआ है. मामले को व्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए अदालत ने याचिकाकर्ताओं के लिए अधिवक्ता सृष्टि को नोडल वकील व राज्यों के लिए अधिवक्ता रुचिरा को नोडल वकील नियुक्त किया है.
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों ने धर्मांतरण विरोधी कड़ें कानून बनाए हैं. इन कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि ये संविधान के अनुच्छेद 21 व 25 के तहत मिले हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता और धर्म की आज़ादी का उल्लंघन करते हैं.