वक्फ बोर्ड अधिनियम में संशोधन जो वक्फ बोर्ड की शक्तियों को सीमित करने की संभावना है, सबसे पहले राज्यसभा में पेश किए जाने की संभावना है. सूत्रों ने दावा किया है कि सरकार इस सप्ताह के भीतर संशोधन लाने के लिए कदम उठा सकती है. बता दें कि संसद का बजट सत्र 12 अगस्त को समाप्त हो रहा है. सूत्रों के अनुसार, सरकार ने संशोधन लाने से पहले सुधार लाने के लिए विभिन्न मुस्लिम बुद्धिजीवियों और संगठनों से बातचीत की और सुझाव लिए. वक्फ बोर्ड अधिनियम में 32-40 संशोधनों पर विचार किया जा रहा है.
वक्फ अधिनियम को पहली बार 1954 में संसद द्वारा पारित किया गया था. इसके बाद, इसे निरस्त कर दिया गया और 1995 में एक नया वक्फ अधिनियम पारित किया गया, जिसने वक्फ बोर्डों को और अधिक अधिकार दिए. वर्ष 2013 में इस अधिनियम में संशोधन करके वक्फ बोर्ड को संपत्ति को 'वक्फ संपत्ति' के रूप में नामित करने के लिए दूरगामी अधिकार दिए गए. सूत्रों के अनुसार प्रस्तावित संशोधनों के तहत वक्फ बोर्ड के लिए जिला कलेक्टर के कार्यालय में अपनी संपत्ति पंजीकृत कराना अनिवार्य किया जा सकता है, ताकि संपत्ति का मूल्यांकन किया जा सके.
संशोधनों का उद्देश्य केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य बोर्डों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करके समावेशिता को बढ़ाना भी है. उत्तर प्रदेश के मंत्री दानिश आजाद अंसारी ने कहा कि वक्फ संपत्ति पर अतिक्रमण और दुरुपयोग की शिकायतें मिली हैं. उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का उपयोग मुस्लिम समुदाय के लोगों के उत्थान के लिए किया जाना चाहिए. हालांकि, हमें अतिक्रमण, भूमि के दुरुपयोग आदि की शिकायतें मिल रही थीं.
मोदी और योगी सरकार मुस्लिम समुदाय के हित में विश्वास करती है. हमें उनके हितों की रक्षा करनी चाहिए. वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का उपयोग मुस्लिम समुदाय के लाभ के लिए अस्पताल, स्कूल और कॉलेज के निर्माण में किया जाना चाहिए. प्रस्तावित संशोधनों की विपक्ष ने तीखी आलोचना की है, जिसने केंद्र सरकार पर वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने का आरोप लगाया है.
सीपीआई महासचिव डी राजा ने कहा कि वक्फ बोर्ड अधिनियम में संशोधन के मुद्दे पर सार्वजनिक डोमेन में मीडिया रिपोर्टों ने पहले ही अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों के मन में गहरी आशंकाएं पैदा कर दी हैं. लोगों ने वक्फ को खत्म करने और वक्फ संपत्तियों को छीनने के भाजपा-आरएसएस के एजेंडे को लागू करने की भयावह योजना को देखना शुरू कर दिया है और देश में इस पर कोई उचित सार्वजनिक बहस नहीं हो रही है. भाजपा-आरएसएस इस तरह के एक के बाद एक कदम उठाने की कोशिश कर रहे हैं.
पहले से ही गृह मंत्री अमित शाह तीन आपराधिक कानूनों को सही ठहरा रहे हैं और उन तीन आपराधिक कानूनों के खिलाफ देश भर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. अब, वक्फ बोर्ड में ये संशोधन प्रस्तावित किए जा रहे हैं और इस पर कोई सार्वजनिक बहस नहीं हो रही है और संसद के अंदर या बाहर कोई बहस नहीं हो रही है. भाजपा-आरएसएस अपने भयावह एजेंडे को लोगों पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं. यह हमारे समाज और संविधान के धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक ताने-बाने के लिए एक गंभीर खतरा बनने जा रहा है.
पहले से ही भाजपा-आरएसएस द्वारा हर संभव तरीके से संविधान के साथ छेड़छाड़ की जा रही है. समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कहा कि सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड अधिनियम में संशोधन की योजना की रिपोर्ट सामने आने के बाद भारतीय जनता पार्टी "मुस्लिम भाइयों के अधिकारों को छीनना" चाहती है. अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा के पास हिंदू-मुस्लिम या मुस्लिम भाइयों के अधिकारों को छीनने के अलावा कोई काम नहीं है. उन्हें जो अधिकार मिले हैं, स्वतंत्रता का अधिकार या अपने धर्म का पालन करने का अधिकार, अपनी कार्य प्रणाली को बनाए रखने का अधिकार.
राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि केंद्र सरकार जन कल्याण के लिए काम नहीं कर रही है. उन्हें देश के गरीबों के कल्याण, महंगाई, गरीबी या बेरोजगारी से कोई लेना-देना नहीं है. लोगों को अच्छी शिक्षा और अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं मिलनी चाहिए. बिहार जैसे गरीब राज्यों में कारखाने और उद्योग लगने चाहिए, भाजपा को इससे कोई लेना-देना नहीं है. वह सिर्फ ध्रुवीकरण और हिंदू-मुस्लिम करके राजनीति करना चाहती है. इस मुद्दे पर खींची गई लड़ाई के साथ ही जब संशोधन सदन में पेश किए जाएंगे तो संसद में हंगामा देखने को मिल सकता है.