नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि यदि बिहार में विशेष गहन संशोधन (SIR) की प्रक्रिया की अवैधता साबित हुई, तो वह सितंबर में भी इसके परिणामों को रद्द कर सकता है. जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाला बागची की खंडपीठ ने चुनाव आयोग और विपक्ष के बीच "विश्वास की कमी" को इस विवाद का मुख्य कारण बताया. इस रिपोर्ट के माध्यम से जानिए सुप्रीम कोर्ट में क्या-क्या हुआ...
- कपिल सिब्बल (RJD सांसद मनोज झा की ओर से): ''1 अगस्त को प्रकाशित मसौदा मतदाता सूची से 65 लाख मतदाताओं को हटाना अवैध है.'' उन्होंने कहा कि बिहार की अधिकांश आबादी के पास चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित दस्तावेज नहीं हैं.
- कोर्ट का जवाब: जस्टिस सूर्यकांत ने इसे "अतिशयोक्तिपूर्ण" तर्क बताया कि बिहार में किसी के पास वैध दस्तावेज नहीं हैं. उन्होंने कहा कि आधार और राशन कार्ड मौजूद हैं, लेकिन इन्हें नागरिकता का अंतिम सबूत नहीं माना जा सकता. "बिहार भारत का हिस्सा है. अगर वहां दस्तावेज नहीं हैं, तो अन्य राज्यों में भी नहीं होंगे. सिम कार्ड खरीदने के लिए भी प्रमाण चाहिए."
- प्रशांत भूषण (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स): चुनाव आयोग ने हटाए गए 65 लाख लोगों की सूची सार्वजनिक नहीं की और यह स्पष्ट नहीं किया कि कौन मृत या प्रवासी है. उन्होंने कहा कि 4 अगस्त तक मसौदा सूची खोजने योग्य थी, लेकिन अब यह सुविधा हटा दी गई है. "नागरिक के तौर पर मुझे आयोग के दस्तावेज़ से जानकारी मिलनी चाहिए, न कि बूथ लेवल एजेंट से."
- राकेश द्विवेदी (चुनाव आयोग): इस तरह की प्रक्रिया में कुछ त्रुटियां स्वाभाविक हैं, लेकिन 30 सितंबर को अंतिम सूची प्रकाशित होने से पहले इन्हें ठीक किया जा सकता है.
- अभिषेक मनु सिंघवी: 5 करोड़ मतदाताओं की नागरिकता पर संदेह करना गलत है. उनकी नागरिकता को अवैध ठहराने से पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन होना चाहिए.
- योगेंद्र यादव (राजनीतिक कार्यकर्ता): आयोग के डेटा पर सवाल उठाते हुए कहा कि 7.9 करोड़ मतदाताओं के बजाय 8.18 करोड़ वयस्क आबादी है. SIR का उद्देश्य मतदाताओं को हटाना है, क्योंकि बूथ लेवल अधिकारियों ने केवल नाम हटाने के लिए घर-घर जांच की. उन्होंने इसे "बड़े पैमाने पर मताधिकार छीनने" का मामला बताया.
इस मामले में सुनवाई बुधवार को फिर शुरू होगी. 29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी थी कि यदि "बड़े पैमाने पर मतदाताओं को हटाया गया" तो वह तुरंत हस्तक्षेप करेगा. मसौदा मतदाता सूची 1 अगस्त को प्रकाशित हुई थी, और अंतिम सूची 30 सितंबर को जारी होगी. विपक्षी दलों (RJD, तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, NCP-शरद पवार, CPI, सपा, शिवसेना-उद्धव ठाकरे, JMM, CPI-ML) और PUCL, ADR व योगेंद्र यादव ने चुनाव आयोग के 24 जून के फैसले को चुनौती दी है. उनका दावा है कि यह प्रक्रिया करोड़ों मतदाताओं के मताधिकार को खतरे में डाल सकती है.
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Kapil Sibal