क्या अखिलेश यादव ने 2027 की हार 2025 में ही स्वीकार ली है? चौंका देने वाली रिपोर्ट सामने आई?

Abhishek Shandilya 26 Mar 2025 07:40: PM 3 Mins
क्या अखिलेश यादव ने 2027 की हार 2025 में ही स्वीकार ली है? चौंका देने वाली रिपोर्ट सामने आई?
  • 8 साल की सरकार का अखिलेश नहीं कर पाए विरोध? क्या योगी के सामने समाजवादी पार्टी सरेंडर हुई?
  • योगी के किसी बयान,सियासी तीर या फिर मिशन का सपा के पास तोड़ नहीं, खोज रही दूसरों का सहारा

नई दिल्ली: ये बात ज्यादा पुरानी नहीं है, साल 2011 का दौर था. मायावती सत्ता में थी. चुनाव होने वाले थे. मुलायम सिंह यादव सधे हुए नेता थे, अखिलेश यादव की सियासत में खुलकर एंट्री हो चुकी थी. मायावती सरकार के जैसे ही चार साल पूरे होते हैं मुलायम सिंह यादव, समाजवादी पार्टी की फौज लेकर पूरा उत्तर प्रदेश घेर लेते हैं? तो सवाल है कि योगी आदित्यनाथ की सरकार जब 8 साल पूरा कर चुकी है?

संभल में सख्त कार्रवाई की तरफ रोज़ बढ़ रही है? योगी जो चाहते हैं, वो करते हैं, तो अखिलेश यादव विरोध करने की बजाय सिर्फ सोशल मीडिया और टीवी चैनल पर बयान देने के अलावा कुछ और क्यों नहीं कर पा रहे हैं? अगले दो मिनट की रिपोर्ट में हम आपको समझाने की कोशिश करेंगे कि अखिलेश यादव की ऐसी कौन सी मज़बूरी है कि वो योगी का विरोध तक नहीं कर पा रहे हैं? यूपी का विपक्ष योगी के सामने चुनाव से ठीक दो साल पहले ही ढेर क्यों है.

UP की सियासत समझने वाले जानकार कहते हैं कि योगी जिस हिसाब से सियासी बैटिंग कर रहे हैं. उसका कोई तोड़ किसी विरोधी के पास नहीं है. 8 साल पूरा हो जाने के बाद सरकार के काम पर जनता का एक पक्ष खुश है, या विरोध की स्थिति में नहीं है. अखिलेश यादव फिलहाल मुसलमानों की सियासत को हवा देने की कोशिश कर रहे हैं. मुलायम सिंह यादव की तरह ही अखिलेश यादव MY यानि मुस्लिम और यादव समीकरण को साधना चाहते हैं.

लोकसभा चुनाव में PDA का नारा काम आया लेकिन 2027 में नहीं आएगा, इसलिए अखिलेश यादव मुसलमानों के लिए इफ्तार में गए, उनके ख़ास नेता और लखनऊ से विधायक रविदास मेहरोत्रा बकायदे मुस्लिम टोपी पहनते हैं. रमजान में नमाज पढ़ते हैं. यानि भगवा पहने योगी अखिलेश की जालीदार टोपी पर काफी भारी है.

हालांकि अखिलेश यादव को हल्के में लेने की भूल योगी कतई नहीं करने वाले हैं? मुलायम सिंह यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी की विरासत अखिलेश यादव के हाथों में है. कुछ लोग ये समझते हैं कि सपा की सरकार आसानी से आएगी, लेकिन उनकी ये सोच गलत है, क्योंकि पहले UP में मुकाबला सपा VS बसपा होता था...तब बीजेपी इतनी टक्कर में नहीं थी....वोटों का बंटवारा कम होता था. आज की स्थिति अलग है. 40 से 45 फीसदी वोट बीजेपी अकेले हासिल करती है. बाकी के बचे वोट बंट जाते हैं. इसलिए अखिलेश यादव मुसलमानों का वोट एकमुश्त लेने की कोशिश में हैं.

राजनीतिक पंडित ये कहते सुने जा रहे हैं कि अखिलेश यादव की सियासत को और कमज़ोर करने के लिए बीजेपी इस बार मायावती को यूपी विधानसभा में ताकतवर भूमिका में खड़ा करेगी. अखिलेश यादव और उनका PDA काम न करे, इसलिए दलितों के नेता चंद्रशेखर मजबूती से खड़े होंगे. अगर मायावती पिक्चर में आती हैं. पार्टी को ज़िंदा करती है. तो UP का समीकरण पूरी तरह से फेल हो जाएगा. मायावती के विधायकों की न सिर्फ संख्या बढ़ेगी, बल्कि समाजवादी पार्टी को एक और हार झेलनी होगी. इसलिए बीते 8 सालों में योगी ने बहन मायावती से कभी रिश्ते खराब नहीं किए हैं. उनके खिलाफ़ कोई बयान नहीं देते हैं. यहां तक कि मायावती खुद योगी सरकार की आलोचना करती हैं, न कि कभी योगी का नाम लेकर कोई शब्द कहती सुनी गईं.

हालात ऐसे हैं कि UP के अधिकारी खुलकर योगी के साथ कंधा मिला चुके है, पुलिस विभाग में इस बात की चर्चा है कि अखिलेश यादव कई अधिकारियों को फोन करते हैं, उन्हें कहते हैं कि आप ऐसा कोई कदम ना उठाए कि फायदा सरकार को मिल जाए. इशारा समझा जा सकता है. जो योगी कभी मैदान में अकेले थे, आज उनके साथ पूरा काफिला है, सिस्टम उनका उनके साथ है, विरोधी कुछ भी कहें, योगी की ताकत बहुत ज्यादा बढ़ गई है. बीजेपी में सबसे ताकतवर वो होता है जिसका साथ RSS देता है. योगी RSS की बुक के पोस्टरबॉय हैं.

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