नई दिल्ली: जिस जंगलराज शब्द का इस्तेमाल आज नेता और आम जनता खूब करते हैं, क्या आपको पता है, ये शब्द कहां से आया, किसने पहली बार इस शब्द का इस्तेमाल किया, और लालू यादव से इसका कनेक्शन कैसे जुड़ा, तो पहले इस शब्द का इतिहास सुनिए, फिर बताते हैं नीतीश कुमार ने कैसे जंगलराज का टैग न सिर्फ हटाया, बल्कि विकसित बिहार का ठप्पा लगाया. कहानी की शुरुआत होती है साल 1997 से. ''तारीख- 5 अगस्त 1997'' पटना हाईकोर्ट में एक मामले की सुनवाई चल रही थी, जस्टिस वीपी आनंद और जस्टिस धर्मपाल की बेंच के सामने समाजसेवी कृष्णा सहाय की याचिका पेश होती है, जिसमें बिहार के हालात का जिक्र होता है. याचिका देखते ही जज साहब कहते हैं... ''बिहार में सरकार नहीं है. यहां भ्रष्ट अफसर राज्य चला रहे हैं और बिहार में जंगलराज कायम हो गया है.''
अदालत की ये टिप्पणी लालू सरकार के लिए न सिर्फ तमाचे की तरह था, बल्कि विपक्षियों ने इसका इतना प्रचार किया कि बच्चे-बच्चे की जुबां पर जंगलराज शब्द छा गया, उसके बाद नीतीश कुमार से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक ने रैलियों में इस शब्द का भरपूर इस्तेमाल किया, लालू यादव एंड फैमिली पर निशाना साधने के लिए ये शब्द एक टैग की तरह इस्तेमाल होने लगा, लेकिन इस टिप्पणी के 8 साल बाद साल 2005 में नीतीश कुमार चूंकि सुशासन के नाम पर सत्ता में आ चुके थे, इसलिए इस टैग को हटाना सबसे बड़ी चुनौती थी.
हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी भले ही भ्रष्टाचार को लेकर की थी लेकिन नीतीश कुमार ने इसे दूसरे तरीके से लिया. जिस बिहार में अपहरण को उद्योग का दर्जा मिल गया था, उस पर लगाम लगाया, फिरौती मांगने वाला गिरोह जो खुलेआम घूमता था, उस पर पुलिस का शिकंजा कसवाया, शहाबुद्दीन जैसे गैंगस्टर जो लालू का करीबी कहा जाता था, वो दिल्ली में संसद के बाहर से ही उसी साल गिरफ्तार कर लिया जाता है, जिस साल नीतीश सीएम की कुर्सी पर बैठते हैं, चूंकि लालूराज में पुलिसकर्मियों की संख्या कम थी, इसलिए नीतीश कुमार का जोर इस बात पर भी था कि सबसे पहले पुलिसबल की संख्या बढ़ाई जाए, इसका आंकड़ा वो खुद विधानसभा में खड़े होकर देते हैं.
साहब-बीबी और गैंगस्टर काल का जो दौर साल 1990 से 2005 तक चला, लालू यादव के साले साधू यादव और सुभाषण यादव के इशारों पर जो अपराध का खेल समूचे बिहार में चल रहा था, उस पर नीतीश ने बड़े ही दिमाग से लगाम लगाया. क्योंकि लालू के जेल जाने के बाद मुख्यमंत्री भले ही राबड़ी देवी बनीं थी, पर राबड़ी ये बात खुद कहतीं थीं कि साहिब ने चाहा तो हम मुख्यमंत्री हैं. जैसे अभी तक घर चलाते थे वैसे ही अब प्रदेश चलाएंगे.
पर प्रदेश चलाने में राबड़ी देवी नाकाम रहीं. नीतीश कुमार ने घोटालों की फाइल खुलवानी शुरू की तो पता चला प्रदेश का खजाना आरजेडी के राज में दोनों हाथों से लूटा गया है, जिसे भरने में साल दो साल नहीं बल्कि एक-दो दशक का वक्त लग गया, गांव-गांव तक सड़कों का जाल बिछाया गया, बिहार के ढिबरी और लालटेन युग से निकालकर एलईडी युग में लाया गया, जंगलराज की जो छवि लालू यादव के राज में बनी थी, वो बिहार अब प्रगति के रास्ते पर तो बढ़ रहा था, लेकिन असल चुनौती थी सोच बदलने की, बाहरी निवेशक बिहार आने को अब भी तैयार नहीं थे, और निवेश के बिना किसी राज्य का विकास अधूरा होता है, इसीलिए नीतीश ने कई योजनाएं लॉन्च की, बिहार के पर्यटन स्थलों का विकास करवाया.
हर मोर्चे पर अधिकारियों और मंत्रियों को सीधा एक्शन लेने के आदेश दिए, जिससे न सिर्फ बिहार की सूरत बदली बल्कि कुछ ही सालों में जंगलराज वाला बिहार मंगलराज के रूप में प्रसिद्ध हो गया, आज बिहार से पूरी तरह अपराध का सफाया नहीं हो पाया है, लेकिन इतना जरूर है कि रात के अंधेरे में गांवों में जाने से लोग डरते नहीं, लालूराज में नक्सलियों का जो खौफ गांव-गांव तक था, उसे केन्द्र की मदद से नीतीश सरकार ने ऐसे कंट्रोल किया कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की संख्या अब पहले की तुलना में काफी कम हो गई है और साल 2026 में पूरे देश से जब नक्सलवाद खत्म होगा तो बिहार का भविष्य और भी उज्जवल होगा. आपको ये जानकारी अगर पसंद आई तो कमेंट कर बताएं. बिहार में आप किस बदलाव की उम्मीद अभी और करते हैं, ये भी बताएं.