नई दिल्ली: मौका था वक्फ बोर्ड के नए कानून पर सुनवाई का, सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच बैठी थी, सीजेआई संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन बड़े ही गौर से एक-एक दलील सुन रहे थे. सरकार की ओर से पेश वकील तुषार मेहता से नए कानून के लेकर सीजेआई ने कुछ सवाल पूछते हैं. विरोध में कपिल सिब्बल कई दलीलें भी देते हैं, जिसके बाद सीजेआई खन्ना अंतरिम आदेश लिखने लगते हैं. उसी दौरान कपिल सिब्बल कुछ ऐसा बोल बैठते हैं कि जज साहब गुस्से में आ जाते हैं.
आम तौर पर ऐसा कोर्टरूम के भीतर देखने को नहीं मिलता, लेकिन ये दूसरा मौका था जब कपिल सिब्बल को सीजेआई ने कुछ ऐसा कहा, जिसे सुनकर वो पूरी तरह शांत हो गए, पहले दिन का किस्सा सबसे पहले आपको बताते हैं, फिर दूसरे दिन वाली बात पर आते हैं. दरअसल पहले दिन कपिल सिब्बल कानून की धाराओं और उदाहरण का जिक्र कर लंबी-लंबी बातें कर रहे थे, जिसे थोड़ी देर सुनने के बाद सीजेआई खन्ना ने कहा संक्षेप में अपनी बात रखें, वक्त ज्यादा नहीं है, जिसे लेकर सिब्बल ने कहा, ''वक्फ बोर्ड पर आया नया कानून इस्लाम के खिलाफ है.'' सीजेआई खन्ना ने जवाब देते हुए कहा, ''हिंदुओं के लिए भी उत्तराधिकार कानून है, क्या मुसलमानों के लिए संसद कानून नहीं बना सकती?''
ये वो सवाल था जिसका कोई सही जवाब सिब्बल के पास नहीं था, क्योंकि सिब्बल पेशे से वकील जरूर हैं, पर कांग्रेस के बड़े नेता भी हैं, और ये बात बेहतर तरीके से जानते हैं कि राजीव गांधी की सरकार में कैसे सुप्रीम कोर्ट का फैसला संसद में पलटा गया था, पर इस बार सरकार का कानून सुप्रीम कोर्ट पलटने नहीं जा रहा, बल्कि कुछ संशोधन हो सकते हैं. ये इशारा दो दिन की सुनवाई के बाद मिल गया है, इसीलिए दूसरे दिन जब सीजेआई अंतरिम आदेश लिखवा रहे थे तो कहा, ''वक्फ घोषित संपत्ति और रजिस्टर्ड संपत्ति को पहले की तरह बने रहने दिया जाए.'' जिसपर कपिल सिब्बल बोले, ''वक्फ बाय यूजर भी इसमें लिखिए,'' तो सीजेआई खन्ना ने कहा, ''मैं आदेश लिखवा रहा हूं, बीच में मत बोलिए,'' जिसे सुनते ही कोर्टरूम का माहौल एकदम बदल गया.
कपिल सिब्बल को ये बात पहले से ही पता है कि वकील कितने भी वरिष्ठ हों उन्हें जज साहब के फैसला लिखने या लिखवाने के दौरान नहीं बोलना होता, बल्कि दलील देने का एक तय वक्त होता है, और जो कायदा नहीं मानता, उसके खिलाफ कोर्ट कार्रवाई भी करता है. नियम ये कहता है अगर अदालत की कार्यवाही के दौरान कोई बीच में टिप्पणी करता है और अदालत को ये अनुचित लगता है तो उसके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई भी हो सकती है, जिसमें कुछ समय की जेल या जुर्माना या फिर दोनों हो सकता है.