नई दिल्ली: मनमोहन सिंह नहीं रहे. लेकिन दुनिया उन्हें कैसे याद रखेगी. एक ऐसे वित्त मंत्री के तौर पर, जिसने देश की आर्थिक रीढ़ को टूटने से बचा लिया. या फिर एक ऐसे प्रधानमंत्री के रुप में, जो सांस भी तब लेता था, जब 10 जनपथ से आदेश आता था. हर किसी की राय मनमोहन सिंह को लेकर अलग-अलग हो सकती है. ये इस बात पर भी निर्भर कर सकता है कि कहानी कह कौन रहा है. लेकिन शायद ही कोई हो, जो उनके सौम्य व्यक्तित्व पर सवाल उठा सके. उनके संघर्ष की कहानी को झुटला सके. उनके न रहते हुए ये कहना गलत नहीं होगा कि उनके जैसा इंसान लाखों में नहीं, बल्कि करोड़ों में एक होता है. पाकिस्तान में पैदा हुए मनमोहन ने देश की आजादी देखी. देश के बंटवारे का दंश व्यक्तिगत तौर पर झेला. पढ़ाई-लिखाई कर इस काबिल बने कि देश की तरक्की में बड़ा योगदान दे सके.
मनमोहन सिंह का बचपन भयंकर अभावों से गुजरा. पंजाब में जिस गाह इलाके में उनका परिवार रहता था, वो इतना पिछड़ा था कि गांव में न तो बिजली थी और न ही स्कूल. मनमोहन सिंह मीलों चलकर स्कूल पढ़ने जाया करते थे. किरोसीन से जलने वाले लैंप में पढ़ाई करते थे. पर मेहनत करते गए तो एक दिन कैंब्रिज में पढ़ने का मौका भी मिला. उन दिनों के बारे में कहा जाता है कि मनमोहन सिंह के पास पैसे कम हुआ करते थे, तो पूरा-पूरा दिन केवल एक-आध चॉकलेट खाकर गूजार दिया करते थे.
वैसे तो देश के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव मनमोहन सिंह को राजनीति में लेकर आए थे. पर दशकों पहले आजादी के बाद, 1962 में जवाहर लाल नेहरू ने पहली बार उन्हें अपनी सरकार में शामिल होने का न्योता दिया था. लेकिन मनमोहन सिंह ने इसे स्वीकार नहीं किया. क्योंकि वो अमृतसर के कॉलेज में टीचर की नौकरी नहीं छोड़ना चाहते थे. अब 90 का वो शुरूआती दौर याद कीजिए, जिसके बारे में सोचकर ही घबराहट होती है. पीवी नरसिम्हा राव की सरकार हुआ करती थी. मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे. भारत के पास मात्र 5.80 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा का भंडार बच था. जिससे सिर्फ 15 दिनों का ही आयात संभव था.
कंगाली की दशा में भारत ने आईएमएफ और यूरोपीय देशों से मदद की गुहार लगाई. लेकिन कुछ हुआ नहीं. पर मनमोहन सिंह ने एक चमत्कारी फॉर्मूला जरूर इजात किया, जिसके दम पर देश की तस्वीर और तकदीर दोनों बदलकर गई. उस वक्त बतौर वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने LPG यानी Liberalization, Privatization और Globalization का एक ऐसा मॉडल देश के सामने रखा. जो देश की आर्थिक सेहत के लिए मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ. विदेशी कंपनियों के साथ-साथ प्राइवेट कंपनियां को भी भारत में काम करने का ऐसा मौका मिल गया. कि हमने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. एक अर्थशास्त्री के तौर पर मनमोहन सिंह के लिए ये सबसे बड़ी उपलब्धि भी रही.
आम तौर पर मनमोहन सिंह का राजनीतिक पक्ष ही लोगों को पता है, लेकिन उनकी कहानी उससे कहीं आगे है. उनके नाम के साथ एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर जोड़ा जाता है. क्योंकि ये प्लान सोनिया गांधी का था. मनमोहन सिंह इसके किरदार मात्र थे. वो राजनीतिक व्यक्ति नहीं थे. इसलिए उन्हें मोस्ट अंडर एस्टीमेटेड पॉलिटिकल पर्सन भी माना गया. हालांकि RTI और मनरेगा जैसे कमद उठाकर मनमोहन सिंह ने जहां धमाल मचा दिया. तो अपने कार्यकाल में कई ऐसे फैसले भी लिए, जिसने सभी को हैरान भी किया. जैसे- 2008 में अमेरिका से सिविल न्यूक्लियर डील पर सरकार का दांव लगाना आसान नहीं था.
पर मनमोहन सिंह ने हिम्मत दिखाई. 2009 में मनमोहन सिंह के सामने बीजेपी ने लाल कृष्ण आडवाणी को खड़ा किया. उन्हें कमजोर प्रधानमंत्री साबित करने की कोशिश की गई. ब्लैक मनी का मुद्दा गर्माया, लेकिन बावजूद इसके मनमोहन सिंह 2009 में दोबारा प्रधानमंत्री बने. तमाम मौकों पर मनमोहन सिंह पर सियासी तंज सके जाते रहे हैं, उन्हें पपेट PM तक कहा गया. लेकिन डॉक्टर साहब ने कभी भी इस आलोचना पर अपनी मर्यादा पार नहीं की.
जवाब भी दिया तो इतने मृदुल भाव से कि सामने वाला भी हैरान रह गया. सियासत में ऐसा आम तौर पर होता नहीं है, पर मनमोहन सिंह के साथ ये खास था. मनमोहन सिंह राजनीति में तो थे, लेकिन राजनीति उनके अंदर नहीं थी. यहीं वजह थी कि कभी चुनाव जीतकर वो संसद या विधानसभा नहीं पहुंचे. हालांकि साल 1999 का लोकसभा चुनाव उन्होंने भले ही साउथ दिल्ली सीट से लड़ा था. पर चुनाव में लाखों का पार्टी फंड भी उन्हें जीत नहीं दिला सका था. इसके बाद 2004 में सोनिया गांधी के लाख कहने के बावजूद उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा और न ही उसके बाद कभी.
पर एक अर्थशास्त्री बिना किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि के प्रधानमंत्री के पद पर जरूर बैठा. और न सिर्फ कुर्सी पर बैठा, 10 साल लगातार आधिकारिक तौर पर सरकार भी चलाई. जवाहर लाल नेहरू के बाद मनमोहन सिंह ही दूसरे प्रधानमंत्री रहे, जो पहले फुल टर्म के बाद दूसरी बार 5 सालों तक सरकार चला पाए. भारतीय इतिहास में उन्हें पहले सिख प्रधानमंत्री होने का गौरव भी हासिल है. उनके हिस्से कामयाबियों के ऐसे कई तमगे हैं. सियासी छींटाकशी भी उसका एक अभिन्न हिस्सा है. पर आज, जब वो हमारे बीच नहीं है. तो उनके योगदान को याद करते हुए उन्हें अंतिम विदाई देना चाहिए. ये देश हमेशा डॉक्टर साहब को याद रखेगा. उनके कामों की सराहना करता रहेगा. आप मनमोहन सिंह को किस तरह से याद करते हैं हमें कमेंट करके जरूर बताइए.