नई दिल्ली: बच्चों और युवा पीढ़ी के बीच कमजोर नजर एक नई महामारी बन गई है. हालांकि इसे ज्यादातर आनुवंशिक माना जाता है, लेकिन अत्यधिक स्क्रीन मायोपिया के जोखिम को बढ़ाने में एक प्रमुख कारक है. एक नए अध्ययन से पता चलता है कि टैबलेट या स्मार्टफोन जैसी डिजिटल स्क्रीन पर प्रतिदिन सिर्फ एक घंटा बिताने से मायोपिया (निकट दृष्टिदोष) का जोखिम 21 प्रतिशत बढ़ सकता है, जो 4 घंटे तक इस्तेमाल करने पर जोखिम को और बढ़ा सकता है.
JAMA Network Open में प्रकाशित शोध में 45 जांचों के डेटा का विश्लेषण किया गया, जिसमें 335,000 से ज्यादा प्रतिभागी शामिल थे. शोध में छोटे बच्चों से लेकर युवा वयस्क को शामिल किया गया था. अध्ययन में सिग्मॉइडल खुराक-प्रतिक्रिया पैटर्न पाया गया, जो स्क्रीन एक्सपोजर के प्रति दिन 1 घंटे से कम की संभावित सुरक्षा सीमा का सुझाव देता है. स्क्रीन पर 1-4 घंटे बिताने के बीच मायोपिया का जोखिम काफी बढ़ गया, फिर धीरे-धीरे यह बढ़ता गया.
शोधकर्ताओं ने कहा कि ये निष्कर्ष मायोपिया के जोखिम के बारे में चिकित्सकों और शोधकर्ताओं को मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं. यह व्यापक विश्लेषण निकट दृष्टिदोष के मामलों में वृद्धि के बीच आया है, जिसका मुख्य कारण डिजिटल स्क्रीन का बढ़ता उपयोग है. वहीं 1 घंटे से कम समय तक स्क्रीन के संपर्क में रहने से कोई खास बदलाव नहीं देखा गया.
भारत में उद्योग विशेषज्ञों ने हाल ही में विशेष रूप से परीक्षा अवधि के दौरान छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों द्वारा सामना की जाने वाली प्रौद्योगिकी और गैजेट उपयोग चुनौतियों पर चर्चा की. स्क्रीन के लंबे समय तक संपर्क में रहने से ध्यान अवधि कम होने के कारण मस्तिष्क के संज्ञानात्मक कार्य प्रभावित हो सकते हैं. लंबे समय तक उपयोग में अक्सर बिस्तर या सोफे पर असुविधाजनक मुद्रा में बैठना शामिल होता है.
स्क्रीन के लंबे समय तक संपर्क में रहने से मोटापा, शरीर में दर्द, रीढ़ की हड्डी की समस्या और पीठ दर्द सहित कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. यह शोध डिजिटल युग में मायोपिया की बढ़ती चिंता को दूर करने के लिए काम कर रहे स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और शोधकर्ताओं के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है. निष्कर्ष विशेष रूप से युवा लोगों के बीच स्क्रीन के समय की निगरानी और उसे सीमित करने के महत्व पर जोर देते हैं.